कोरोना कहर
रुका था सभीका चाल,करोना किया बेहाल,
आँखें नम देख हाल, वो सुनसान सड़क।
संस्थान,दुकान सभी,खुलत था कभी कभी,
देख दुख होता तभी,वो सुनसान सड़क।
मास्क था सभी के मुख,बदला मानव रूख,
जीव देख जाता सूख,वो सुनसान सड़क।
हाथ भी मिलाना नहीं,कहीं कुछ खाना नहीं,
वाहन भी चलाना नहीं,वो सुनसान सड़क।
मौत पर मौत होती ,बिखरा जीवन ज्योति,
लाश की न पता होती,ऐसा था करोना काल।
लुप्त अनमोल प्यार, सभी का भेंट दिदार,
समय बना कटार ,ऐसा था करोना काल।
दहशत बेजोड़ था, दुखड़ा चहुँ ओर था,
खतम तोर - मोर था,ऐसा था करोना काल।
समय था विकराल,पग-पग खड़ा था काल,
नियम सभी रहें पाल,ऐसा था करोना काल।
सीख ऐ रहा सबल , नर सत्य मार्ग चल,
जीवन होगा सुफल ,हरि जी का ध्यान कर।
आपसी बढ़ा के प्यार,जग जीवन सँवार,
शीघ्र होजा तइयार, दुख दूसरों का हर।
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बाबूराम सिंह कवि
बडका खुटहाँ, विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)841508
मो॰नं॰ - 9572105032
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Tags:
कविता