मानवीय संवेदना
मानव जन्मजात, संवेदन शील स्वभाव का होता है,
कभी खुश, कभी चिन्तित और कभी अकारण ही रोता है।
मानव देह, जैसे जीवित यन्त्र है, सदा चलायमान रहता है,
अन्तस में , भावनाओं का, समन्दर लहराता है,
अश्रु बन बहता है।
देखकर पीड़ा किसी की, बरबस आह निकल जाती है,
यही तो संवेदना है,इंसानियत कहलाती है।
पड़ोसी हो बीमार, तो, हमें , नींद नहीं आती है।
प्रेम ही है जोड़ती, सबके दिलों में, गीत गाती है।
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पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली
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कविता